क्या यीशु बुराई करता है? या वह बुराई की अनुमति देता है? पृथ्वी पर प्राकृतिक आपदाओं और महामारी जैसी बुरी घटनाओं का कारण क्या है?
हमारे परमेश्वर की इच्छा या उनके आदेश के बिना इस पृथ्वी पर कुछ भी नहीं होता है। पृथ्वी पर होने वाली घटनाओं को प्राकृतिक आपदाओं या मानव निर्मित आपदाओं के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता है।
मैं इसे प्रभु यहोवा की आत्मा द्वारा सिखाई गई बातों के आधार पर समझाता हूँ। धैर्य रखें और इसे पूरा पढ़ें।
प्रभु परमेश्वर ने पृथ्वी की सृष्टि की, और मनुष्य के जीने के लिए आवश्यक सभी अच्छी चीजें बनाईं, और फिर मनुष्य को उत्पन्न किया। उसने मनुष्य के सामने जीवन के वृक्ष का फल और भले-बुरे के ज्ञान के वृक्ष का फल रखा ! प्रभु ने इसे इस तरह क्यों रखा? क्योंकि उसने मनुष्य को अपनी स्वरूप के अनुसार बनाया था। जिस तरह परमेश्वर जो चाहता है वह करता है, उसी तरह उसने मनुष्य को जो चाहे वह करने का अधिकार दिया है। इसके अलावा उसने उस मृत्यु के बारे में भी चेतावनी दी जो तब आएगी जब मनुष्य अपनी दी गई स्वयं इच्छा का दुरुपयोग करेगा।
यह वह विधि थी जिसे परमेश्वर ने मनुष्य की सृष्टि के समय स्थापित किया था, यह आज भी जारी है। जब मनुष्य ने परमेश्वर की सलाह के अनुसार अच्छाई को चुना, तो उसके लिए सब कुछ अच्छा था, लेकिन जब उसने दुश्मन की सलाह पर ध्यान दिया और बुराई को चुनकर परमेश्वर की आज्ञा का अवज्ञा किया, तो उसके कर्म का फल उसके जीवन में और इस पृथ्वी पर प्रकट हुआ।
जब प्रभु ने मनुष्य को शुद्ध करने के लिए मूसा के माध्यम से एक अस्थायी शुद्धिकरण किया, तो उसने मनुष्य के जीवन की भलाई के लिए आज्ञाएँ भी दीं। देखो, मैं तुम्हारे सामने आशीर्वाद और शाप रखता हूँ, यदि तुम मेरी आज्ञाओं के अनुसार करोगे... मेरे वचनों में कहा हुआ आशीर्वाद तुम पर आएगा और यदि तुम मेरी आज्ञाओं का पालन न करके विश्वासघात करोगे, तो मेरे वचनों में कहा हुआ शाप तुम पर आएगा... इस तरह प्रभु ने मूसा के माध्यम से लोगों को चेतावनी दी।
इब्राहीम, इसहाक, याकूब, यूसुफ, मूसा, यहोशू और कालेब जैसे धर्मी पुरुषों ने दूध और शहद से बहने वाली भूमि और परमेश्वर के वचन में कहे गए सभी आशीर्वादों को विरासत में प्राप्त किया क्योंकि वे परमेश्वर की आज्ञाओं के प्रति सच्चे थे।
लेकिन जब उनके लोगों ने उनकी आज्ञाओं पर ध्यान न देकर उसे धोखा दिया... प्रभु के वचन के अनुसार शाप, तलवार, महामारी, अकाल और विनाश आया।
जब यहोशू को कनान देश विरासत में मिला, तब यहोवा ने मूसा को जो आज्ञा दी थी, उसके अनुसार उस ने दो पहाड़ बनाए जो उस देश में एक दूसरे के पास खड़े थे, एक आशीर्वाद के लिये और दूसरा शाप के लिये। (व्यवस्थाविवरण 11:29)। यहां यह प्रश्न उठता है कि जिस भूमि को आशीर्वाद के रूप में दिया गया था, उसमें एक पर्वत को अभिशाप के रूप में क्यों रखा गया था। यह प्रभु यीशु मसीह के बारे में है। मैं उसका भी स्पष्टीकरण देता हूँ।
परमेश्वर ने प्रभु यीशु मसीह को मनुष्य को पाप से मुक्त करने और उसे स्थायी रूप से शुद्ध करने के लिए इस दुनिया में भेजा था।
लेकिन जब यीशु का जन्म हुआ, तो प्रभु के वचन ने शिमोन नामक परमेश्वर के एक मनुष्य के द्वारा यीशु के विषय में भविष्यवाणी की, "जब शिमोन ने उन्हें आशीर्वाद दिया, और उसकी माँ मरियम से कहा, "देखो, यह बच्चा इस्राएल में बहुतों के पतन और उत्थान के लिए नियत है,और एक ऐसे चिन्ह के लिए जिसके विरुद्ध बातें की जाएंगी, ताकि बहुत से मन के विचार प्रकट हो सकें " (लूका 2:34,35)।
जैसा लिखा है; देखो मैं सियोन में एक ठेस लगने का पत्थर, और ठोकर खाने की चट्टान रखता हूं; और जो उस पर विश्वास करेगा, वह लज्ज़ित न होगा। रोमियों 9:33.
पवित्र शास्त्र के अनुसार, हम जानते हैं कि यीशु ही अनन्त चट्टान है।
यीशु ने उन लोगों से कहा जो उस पर विश्वास करते थे, “यदि तुम मुझसे प्रेम करते हो, तो मेरी आज्ञाओं को मानो”। इसका क्या अर्थ है? जो यीशु पर विश्वास करता है वह जीवित रहेगा और जो उस पर विश्वास नहीं करता और उनकी आज्ञाओं का उल्लंघन करता है वह ठोकर खाकर चट्टान से गिर जाएगा, शास्त्रों के अनुसार। जब कोई व्यक्ति ठोकर खाकर चट्टान से गिर जाए तो क्या होगा? मैं इसे आपकी चर्चा पर छोड़ता हूँ।
यह परमेश्वर का विधान है। जब इस्राएलियों ने यीशु को अस्वीकार किया तो उन पर विनाश आया, और जब अन्यजातियों ने यीशु को स्वीकार किया तो उन्हें इस पृथ्वी पर जीवन प्राप्त हुआ।
जब यीशु इस दुनिया में रहते थे, तो वे उन लोगों से स्पष्ट रूप से बात करते थे जो उनसे सवाल करते थे।
यही यीशु ने उन लोगों से कहा जो सोचते हैं कि “यह मानव निर्मित विनाश है”...👇
लूका 13
1: उस समय कुछ लोग वहाँ उपस्थित थे जिन्होंने उसे उन गलीलियों के विषय में बताया जिनका लहू पिलातुस ने उनके बलिदानों के साथ मिला दिया था।
2: और यीशु ने उत्तर दिया और उनसे कहा, "क्या तुम समझते हो कि ये गलीली अन्य सभी गलीली लोगों से अधिक पापी थे क्योंकि उन्होंने ऐसी पीड़ाएँ झेलीं?
3: मैं तुमसे कहता हूँ, नहीं; परन्तु यदि तुम पश्चाताप नहीं करोगे तो तुम सब भी इसी प्रकार नाश होगे। यीशु ने यही बात उन लोगों से कही जो कहते हैं, “यह स्वाभाविक रूप से हुआ।"
4: या क्या तुम समझते हो कि वे अठारह जन जिन पर शीलोह का गुम्मट गिरकर मर गया, यरूशलेम में रहने वाले और सब मनुष्यों से अधिक पापी थे?
5: मैं तुमसे कहता हूँ, नहीं; लेकिन अगर तुम पश्चाताप नहीं करोगे तो तुम सब भी इसी तरह नाश हो जाओगे।"
इन दोनों भागों में एक बात समान रूप से कही गई है। चाहे वह प्राकृतिक विनाश हो या मानव निर्मित... यदि तुम पश्चाताप नहीं करोगे, तो तुम सब नष्ट हो जाओगे, यही यीशु ने कहा है। इससे कोई क्या जान सकता है? जब मनुष्य परमेश्वर का भय मानता है और उसे प्रसन्न करते हुए जीवन जीता है, तो वह परमेश्वर द्वारा निर्धारित आशीर्वाद और सुरक्षा का पूरा आनंद उठाता है।
लेकिन जब मनुष्य परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह करता है, तो उसे अपनी अवज्ञा के कारण परमेश्वर द्वारा नियुक्त शाप और विनाश सहना पड़ता है।
परमेश्वर मनुष्य के लिए क्या बुराई चाहता है? या क्या परमेश्वर बुराई करता है? नहीं, वह न तो बुरा करने वाला है और न ही उनकी बुराई करने का इरादा है। फिर ऐसा क्यों हो रहा है? क्योंकि यह परमेश्वर का विधान है। यह धरती और इसमें जो कुछ भी है, सब उन्होंने बनाया है। वह मनुष्य के साथ बुरा कैसे कर सकते हैं? इसलिए हम उन्हें सवाल नहीं कर सकते।
हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि परमेश्वर जितना प्रेममय है, उतना ही वह धर्मी भी है। परमेश्वर ने इंसान को सिखाया है कि क्या अच्छा है और क्या बुरा। उन्होंने ऐसा हमारे प्रति उनके प्रेम क कारण किया, लेकिन जब हम इसका भी उल्लंघन करते हैं... तो सब कुछ उनकी आदेश के अनुसार ही होता है क्योंकि वह धर्मी है।
पृथ्वी पर सभी अधिकारी और सरकारें इसी आधार पर काम करती हैं। जब हम सत्य पर चलकर परमेश्वर को प्रसन्न करते हैं, तो परमेश्वर सरकार में अच्छे लोगों को स्थापित करता है। लेकिन जब लोग परमेश्वर को अस्वीकार करते हैं और सत्य की अवज्ञा करते हैं, वह दुष्टों को सत्ता में रखता है।
हमारा परमेश्वर ही है जो बुराई को भलाई में बदल देता है। प्रभु इसका उपयोग लोगों को अपनी महानता और शक्ति का एहसास कराने के लिए करते हैं, और उन्हें यह भी एहसास दिलाते हैं कि दुश्मन कितना दुष्ट है। इसके माध्यम से कई लोगों ने अपना हृदय परमेश्वर की ओर मोड़ लिया है।
इसलिए, इस धरती पर और स्वर्ग में हर इंसान के जीवन में जो कुछ भी होता है वह परमेश्वर द्वारा स्थापित विधि के अनुसार ही होता है।
यह तर्क दिया जा सकता है कि परमेश्वर की इच्छा परमेश्वर के आदेश से भिन्न है। परमेश्वर की इच्छा है कि "कोई भी नाश न हो"। यही कारण है कि भले ही मनुष्यों ने परमेश्वर के साथ इतना विद्रोह और विश्वासघात किया है, फिर भी परमेश्वर दयालु होने के कारण सभी को अवसर देना जारी रखतें हैं और इसलिए वह अपने नबियों के द्वारा चेतावनी देता है, डांटता है, और दण्ड देता है। यह परमेश्वर की दया और अनुग्रह है जिसने पवित्र आत्मा के द्वारा यह सन्देश आप तक पहुँचाया है।
परन्तु जब मनुष्य अपनी स्वेच्छा से परमेश्वर की इच्छा का उल्लंघन करता है …परमेश्वर के विधान के अनुसार राष्ट्रों में अभी भी चीज़ें हो रही हैं।
जबकि यह मूल सत्य भी बहुत से लोगों को ज्ञात नहीं है, क्यों?
शास्त्रों के अनुसार, इस संसार के देवता (शैतान) ने उनकी मन की आंखें अंधी कर दी हैं ताकि वे सत्य को न जान सकें…दुश्मन ने कई लोगों की आँखें अंधी कर दी हैं। इस तरह आदम और हव्वा को दुश्मन ने अंधा कर दिया था। हाँ, उस समय से लेकर अब तक, शत्रु सत्य के द्वारा लोगों को धोखा देता आ रहा है। जैसे कि, वह सभी को सत्य को गलत तरीके से समझाकर या उससे अज्ञात बनाकर धोखा दे रहा है।
इसलिए, हम यह सवाल नहीं कर सकते कि क्या इस तरह के विनाश या महामारी को "परमेश्वर ने अनुमति दी थी? या परमेश्वर ने किया?" यह परमेश्वर का आदेश है।
तो इस सच्चे प्रभु के शब्दों को समझो, प्रभु के सामने नम्र बनो, और परमेश्वर के सामने उन पापों को स्वीकार करो जो तुमने अपनी अज्ञात या शैतान के धोखे के कारण परमेश्वर के विरुद्ध बोले हैं, प्रभु के पास लौट आओ और वह तुम्हारे पास लौट आएगा।
जिसके कान हों वह सुन ले कि आत्मा क्या कहता है।
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